मजहब

"मेरा मजहब तो ये दो हथेलियाँ बताती है.।
जुड़े  तो "पूजा"खुले तो "दुआ"कहलाती हैं.।।

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याद

वो कह कर चले गये की "कल" से भूल जाना हमे..। हमने भी सदियों से "आज" को रोके रखा है..।।

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