कब्रस्तान
सोच राहा हु के बना लू एक कब्रिस्तान दील में.....;
के सारे ख्वाब एक-एक करके मरते ही जा रहे हैं......
सोच राहा हु के बना लू एक कब्रिस्तान दील में.....;
के सारे ख्वाब एक-एक करके मरते ही जा रहे हैं......
वो कह कर चले गये की "कल" से भूल जाना हमे..। हमने भी सदियों से "आज" को रोके रखा है..।।
कोई टिप्पणी नहीं