रिवाज

ठहाके छोड़ आये हैं कच्चे घरों मे हम.।

रिवाज़ इन पक्के मकानों में बस मुस्कुराने का है ।।

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याद

वो कह कर चले गये की "कल" से भूल जाना हमे..। हमने भी सदियों से "आज" को रोके रखा है..।।

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