अल्फ़ाज़ के कुछ तो कंकर फ़ेंको।
यहाँ झील सी गहरी ख़ामोशी है।।
वो कह कर चले गये की "कल" से भूल जाना हमे..। हमने भी सदियों से "आज" को रोके रखा है..।।
कोई टिप्पणी नहीं