जिन्दगी
कुछ पन्ने क्या फटे ज़िन्दगी की किताब के।
ज़माने ने समझा हमारा दौर ही ख़त्म हो गया।।
कुछ पन्ने क्या फटे ज़िन्दगी की किताब के।
ज़माने ने समझा हमारा दौर ही ख़त्म हो गया।।
वो कह कर चले गये की "कल" से भूल जाना हमे..। हमने भी सदियों से "आज" को रोके रखा है..।।
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