जादुगरि

खुले बाज़ार की काली सदी में,
अब आईनों को अन्धे बेचते हैं,
ये कैसा दौर है जादूगरी का,
मदारी को जमूरे बेचते हैं।।

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याद

वो कह कर चले गये की "कल" से भूल जाना हमे..। हमने भी सदियों से "आज" को रोके रखा है..।।

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