कलम से सीख रहा हूं अदब ए दुनियादारी।
जब भी चलती है , सर झुका के चलती है।।
वो कह कर चले गये की "कल" से भूल जाना हमे..। हमने भी सदियों से "आज" को रोके रखा है..।।
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