मय की तौबा को तो मुद्दत हुई लेकिन,
बे-तलब अब भी जो मिल जाए तो इंकार नहीं।।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें
(
Atom
)
याद
वो कह कर चले गये की "कल" से भूल जाना हमे..। हमने भी सदियों से "आज" को रोके रखा है..।।
कोई टिप्पणी नहीं