हम भी सुल्तान थे
मै निकला शामे शहर को, दिल मे कुछ अरमान थे।
एक तरफ थी सब्ज झाड़ियां, एक तरफ टूटे कब्रस्तान थे।
पाँव तले एक हड्डी पड़ी जिसके ये बयान थे।
संभलकर चल ए चलने वाले, कभी हम भी सुल्तान थे।।
मै निकला शामे शहर को, दिल मे कुछ अरमान थे।
एक तरफ थी सब्ज झाड़ियां, एक तरफ टूटे कब्रस्तान थे।
पाँव तले एक हड्डी पड़ी जिसके ये बयान थे।
संभलकर चल ए चलने वाले, कभी हम भी सुल्तान थे।।
वो कह कर चले गये की "कल" से भूल जाना हमे..। हमने भी सदियों से "आज" को रोके रखा है..।।
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