दोस्त
दौर-ए-गर्दिश में भी,जीने का मज़ा देते है.।
चंद दोस्त हैं जो वीरानों में भी,महफ़िल सजा देते है.।।
सुनाई देती है अपनी हंसी,उनकी बातों में।
दोस्त अक्सर,जीने की वजह देते हैं।।
दौर-ए-गर्दिश में भी,जीने का मज़ा देते है.।
चंद दोस्त हैं जो वीरानों में भी,महफ़िल सजा देते है.।।
सुनाई देती है अपनी हंसी,उनकी बातों में।
दोस्त अक्सर,जीने की वजह देते हैं।।
वो कह कर चले गये की "कल" से भूल जाना हमे..। हमने भी सदियों से "आज" को रोके रखा है..।।
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