दोस्त

दौर-ए-गर्दिश में भी,जीने का मज़ा देते है.।

चंद दोस्त हैं जो वीरानों में भी,महफ़िल सजा देते है.।।

सुनाई देती है अपनी हंसी,उनकी बातों में।

दोस्त अक्सर,जीने की वजह देते हैं।।

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याद

वो कह कर चले गये की "कल" से भूल जाना हमे..। हमने भी सदियों से "आज" को रोके रखा है..।।

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