चादर से पैर तभी बाहर आते हैं,। जब उसूलों से बड़े ख्वाब हो जाते हैं ।।
वो कह कर चले गये की "कल" से भूल जाना हमे..। हमने भी सदियों से "आज" को रोके रखा है..।।
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