फितरत
ये सोच के कटवा दिया कमबख्त ने वो पेड़ साहेब।
आँगन में मेरे है और पड़ोसी को हवा देता है।।
ये सोच के कटवा दिया कमबख्त ने वो पेड़ साहेब।
आँगन में मेरे है और पड़ोसी को हवा देता है।।
वो कह कर चले गये की "कल" से भूल जाना हमे..। हमने भी सदियों से "आज" को रोके रखा है..।।
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