परवाह

दौलत नहीं, शोहरत नहीं,ना वाह वाह चाहिये.।
कहाँ हो ? कैसे हो ? दो लब्जों की परवाह चाहिये।।

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याद

वो कह कर चले गये की "कल" से भूल जाना हमे..। हमने भी सदियों से "आज" को रोके रखा है..।।

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