अनदेखे धागों से यूँ बाँध गया कोई.। वो साथ भी नहीं और हम आजाद भी नहीं।।
वो कह कर चले गये की "कल" से भूल जाना हमे..। हमने भी सदियों से "आज" को रोके रखा है..।।
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