गुलजार

जलाने पड़ते हैं ज़ख्म,साँसों की ड़ोर तक।

यूँ ही कोई गुलज़ार या,ग़ालिब नहीं होता।।

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याद

वो कह कर चले गये की "कल" से भूल जाना हमे..। हमने भी सदियों से "आज" को रोके रखा है..।।

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