सियासत

इस कदर उलझा दिया है,दिमाग सियासत दारो ने.।
बेहाल देखता हूं किसी को तो सोचता हूं,
पहले जात पूछूँ कि हाल पूछूँ।।

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याद

वो कह कर चले गये की "कल" से भूल जाना हमे..। हमने भी सदियों से "आज" को रोके रखा है..।।

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