आवाज बनाता हू

सुन्दर सुर सजाने का साज बनाता हूँ ।
नौसिखिये परिंदों को बाज बनाता हूँ ।।

चुपचाप सुनता हूँ शिकायतें सबकी ।
तब दुनिया बदलने की आवाज बनाता हूँ ।।

समंदर तो परखता है हौंसले कश्तियों के ।
और मैं डूबती कश्तियों को जहाज बनाता हूँ ।।

बनाए चाहे चांद पे कोई बुर्ज-ए-खलीफा ।
अरे मैं तो कच्ची ईंटों से ही ताज बनाता हूँ ।।

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याद

वो कह कर चले गये की "कल" से भूल जाना हमे..। हमने भी सदियों से "आज" को रोके रखा है..।।

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