आस
प्यास दरियां की निगाहों में छुपा रक्खी है.
एक बादल से बड़ी आस लगा रक्खी है.
तेरी आँखों की कशिश कैसे तुझे समझाऊँ.
इन चरागों ने मेरी नींद उड़ा रक्खी है.
तेरी बातो को छुपाना नही आता मुझसे.
तूने खुशबु मेरे लहजे में बसा रक्खी है.
क्यों न आजाए महकने का हुनर लफ़्ज़ों को.
तेरी चिट्ठी जो किताबो में छुपा रक्खी है.
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