बचपन
काग़ज़ की कश्ती थी पानी का किनारा था;
खेलने की मस्ती थी ये दिल अवारा था;
कहाँ आ गए इस समझदारी के दलदल में;
वो नादान बचपन भी कितना प्यारा था।।।
काग़ज़ की कश्ती थी पानी का किनारा था;
खेलने की मस्ती थी ये दिल अवारा था;
कहाँ आ गए इस समझदारी के दलदल में;
वो नादान बचपन भी कितना प्यारा था।।।
वो कह कर चले गये की "कल" से भूल जाना हमे..। हमने भी सदियों से "आज" को रोके रखा है..।।
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