चाहत

चाहत के चिराग़ों में, ये ही अजीब बात है।
मद्धम तो हो जाते हैं, मग़र बुझते नहीं.।।

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याद

वो कह कर चले गये की "कल" से भूल जाना हमे..। हमने भी सदियों से "आज" को रोके रखा है..।।

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