बन्दगी
मिल जाता है दो पल का सुकूंन बंद आँखों की बंदगी में ।
वरना परेशां कौन नहीं अपनी-अपनी ज़िंदगी में..।।
मिल जाता है दो पल का सुकूंन बंद आँखों की बंदगी में ।
वरना परेशां कौन नहीं अपनी-अपनी ज़िंदगी में..।।
वो कह कर चले गये की "कल" से भूल जाना हमे..। हमने भी सदियों से "आज" को रोके रखा है..।।
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