अरमान बहुत हे


खुशियाँ कम और अरमान बहुत हैं ।
जिसे भी देखो परेशान बहुत है ।।

करीब से देखा तो निकला रेत का घर ।
मगर दूर से इसकी शान बहुत है ।।

कहते हैं सच का कोई मुकाबला नहीं ।
मगर आज झूठ की पहचान बहुत है ।।

मुश्किल से मिलता है शहर में आदमी ।
यूं तो कहने को इन्सान बहुत हैं ।।

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याद

वो कह कर चले गये की "कल" से भूल जाना हमे..। हमने भी सदियों से "आज" को रोके रखा है..।।

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