सच बोलने के तौर तरीके नही रहे। पत्थर बहुत हे शहर मे शीशे नही रहे।।
वो कह कर चले गये की "कल" से भूल जाना हमे..। हमने भी सदियों से "आज" को रोके रखा है..।।
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